Don’t worry if you are not getting success
आज हर कोई सफलता के पीछे क्यों पागल है क्यों ….? इसका जवाब सीधा नहीं है, लेकिन कुछ मुख्य कारणों को समझा जा सकता है:
आज समाज की परिभाषा पूरी तरह से बदल गई है। आज के समाज में सफलता को अकसर पैसा, शोहरत, और सोशल स्टेटस से जोड़ा जाता है।
अगर किसी के पास महंगी कार, बड़ा घर, या सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स हैं, तो उसे “सफल” माना जाता है — भले ही वो अंदर से संतुष्ट न हो।
आज समाज में सोशल मीडिया का दबाव –
इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब जैसी जगहों पर लोग अपनी “बेस्ट लाइफ” दिखाते हैं।
दूसरे लोगों की सफलता देखकर एक तरह की comparison और competition की भावना पैदा होती है:
“वो कर सकता है तो मैं क्यों नहीं?”
आज समाज में अस्थिरता और असुरक्षा –
आज की दुनिया में नौकरियाँ, रिश्ते, और जीवन की स्थिरता पहले जैसी नहीं रही।
इसलिए लोग खुद को “सेट” करने के लिए सफलता के पीछे भागते हैं, ताकि भविष्य सुरक्षित हो।
आज समाज में पहचान की तलाश –
बहुत लोग अंदर से स्वीकृति (acceptance) और पहचान (identity) चाहते हैं।
उन्हें लगता है कि अगर वो सफल हो गए, तो लोग उन्हें मानेगे, सराहेंगे — और शायद खुद भी खुद को स्वीकार पाएंगे।
आज समाज में खुशी की गलत समझ –
लोग मानते हैं कि सफलता = खुशी
लेकिन सच्चाई यह है कि:
“सफलता हमेशा खुशी नहीं देती, लेकिन सच्ची खुशी से आप अपने जीवन को सफल मानने लगते हैं।”
आज समाज में क्या हर किसी को सफलता के पीछे भागना चाहिए?-
नहीं, हर किसी की सफलता की परिभाषा अलग होनी चाहिए।
किसी के लिए सफलता पैसा है, किसी के लिए शांति, किसी के लिए परिवार।
असल सवाल यह होना चाहिए:
“मेरे लिए सफलता क्या है, और क्या मैं उसी दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ?”
अगर आपको सफलता नहीं मिल पा रही है तो परेशान नो हो , भगवत गीता
भगवद गीता में ऐसे कई गूढ़ और प्रेरणादायक उपदेश हैं जो जीवन की कठिनाइयों और असफलताओं से निपटने में हमारी मदद करते हैं। अगर आपको सफलता नहीं मिल रही है, तो भगवद गीता का यह श्लोक विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है:
भगवद गीता – अध्याय 2, श्लोक 47:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ (अनुवाद):
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं।
इसलिए कर्म को फल की इच्छा से मत करो, और न ही अकर्मण्यता (कर्म न करने) में तुम्हारी प्रवृत्ति हो।
इसका भावार्थ क्या है?
अगर सफलता नहीं मिल रही है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि तुम गलत रास्ते पर हो या तुम्हारी मेहनत व्यर्थ है। गीता हमें यह सिखाती है कि:
अपने कार्य पर ध्यान दो, न कि उसके परिणाम पर।
फल की चिंता करने से मन विचलित होता है, जिससे मेहनत का प्रभाव भी कम हो सकता है।
असफलता भी एक अनुभव है, जो भविष्य की सफलता का मार्ग बनाती है।
क्या करें जब सफलता न मिले?
स्वयं में विश्वास रखें – आत्मविश्वास सबसे बड़ी शक्ति है।
सीखते रहें – हर असफलता एक पाठशाला है।
लगातार प्रयास करें – प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।
आंतरिक शांति बनाए रखें – ध्यान, योग, प्रार्थना करें।
भगवद गीता के कुछ और प्रेरणादायक श्लोकों को देखते हैं, जो असफलता, चिंता, और आत्मबल को लेकर जीवन में मार्गदर्शन करते हैं:
अध्याय 2, श्लोक 13
देहिनोऽस्मिन यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
भावार्थ:
जैसे इस शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था आती हैं, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा एक नया शरीर धारण करती है। जो ज्ञानी है, वह इस परिवर्तन से विचलित नहीं होता।
संदेश: जीवन में परिवर्तन (जैसे सफलता-असफलता) स्थायी नहीं हैं। धैर्य और समझ जरूरी है।
अध्याय 4, श्लोक 7–8
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
भावार्थ:
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं अवतार लेता हूँ। मैं सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए आता हूँ।
संदेश: जब भी समय कठिन हो, ईश्वर साथ होते हैं। हर कठिन समय में कोई न कोई सकारात्मक परिवर्तन जरूर होता है।
अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
भावार्थ:
मनुष्य को अपने द्वारा ही अपने को ऊपर उठाना चाहिए, और अपने को गिराना नहीं चाहिए। क्योंकि व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही शत्रु।
संदेश: आत्मविश्वास और आत्म-संयम ही सच्चे सहायक हैं। हारने के बाद भी उठने की ताकत खुद के अंदर से आती है।
गीता के श्लोकों का स्मरण कैसे करें?
ध्यान और सकारात्मक सोच कैसे विकसित करें?
सफलता के लिए दिनचर्या कैसी रखें?
आप किस दिशा में और जानना चाहेंगे?
कि भगवद गीता के विचारों को रोजमर्रा की ज़िंदगी में कैसे लागू किया जाए, खासकर तब जब सफलता नहीं मिल रही हो:
दिन की शुरुआत – सकारात्मकता से करें
सुबह 5-6 बजे उठें और 5 मिनट के लिए ध्यान करें।
मन में दोहराएं:
“मैं कर्मयोगी हूँ, मैं अपने प्रयासों में ईमानदार हूँ, फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ता हूँ।”
लाभ: दिन की शुरुआत शांति और उद्देश्य के साथ होती है।
भगवद गीता एक श्लोक रोज़ पढ़ें – अर्थ के साथ
हर दिन गीता का एक श्लोक पढ़ें और सोचें कि उसका अर्थ आपके जीवन की वर्तमान परिस्थिति से कैसे जुड़ता है।
उदाहरण:
आज आपने पढ़ा – “कर्मण्येवाधिकारस्ते…”, तो सोचें:
क्या मैं अपना 100% दे रहा हूँ, या सिर्फ फल की चिंता कर रहा हूँ?
चिंता कम करने के लिए “स्मरण” अभ्यास
जब भी निराशा या चिंता हो, कुछ पल के लिए आंखें बंद करें और मन ही मन दोहराएं:
“जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है, जो होगा अच्छा ही होगा।”
(यह भी गीता का सार माना जाता है – भगवान श्रीकृष्ण ने यही कहा था।)
लाभ: चिंता धीरे-धीरे कम होती है और अंदर से संतुलन आता है।
सफलता का अर्थ बदलें
गीता कहती है — “सफलता वह नहीं जो बाहर है, बल्कि वह है जो भीतर से संतुष्टि दे।”
क्या आप अपने अंदर की शक्ति, शांति, और कर्म पर विश्वास कर पा रहे हैं?
अगर हाँ, तो आप पहले से सफल हैं।
अनुशासन = आत्मबल
गीता का मूल संदेश है – “सदैव संतुलित रहो।”
इसका अभ्यास इस तरह करें:
रोज़ एक ही समय पर सोना और उठना
मोबाइल और सोशल मीडिया से सीमित दूरी
समय पर भोजन और थोड़ी सी कसरत
दूरी/समय: लगभग 10-15 मिनट हर दिन
लक्ष्य: मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और जीवन में संतुलन
आत्म-विश्लेषण और गीता का श्लोक
श्लोक पढ़ें: “कर्मण्येवाधिकारस्ते…” (अध्याय 2, श्लोक 47)
प्रैक्टिकल अभ्यास:
आज केवल अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें, बिना किसी फल की चिंता किए।
जो भी काम करें, उसे पूरी तन्मयता से करें।
ध्यान: आत्मविश्लेषण करें – क्या आप फल की चिंता करते हैं या केवल अपने काम पर ध्यान केंद्रित करते हैं?
ध्यान और मानसिक शांति
श्लोक पढ़ें: “ध्यानाद्वै”(अध्याय 6, श्लोक 5)
प्रैक्टिकल अभ्यास:
5 मिनट ध्यान करें। अपनी सांस पर ध्यान लगाएं, और धीरे-धीरे किसी भी मानसिक उथल-पुथल को शांत करें।
कोशिश करें कि आपकी सोच हर परिस्थिति में संतुलित रहे।
ध्यान: क्या आप मानसिक शांति महसूस कर पा रहे हैं? क्या कोई बाहरी चीज़ आपको परेशान कर रही है?
आत्म-विश्वास और धैर्य
श्लोक पढ़ें: “उद्धरेदात्मनात्मानं…” (अध्याय 6, श्लोक 5)
प्रैक्टिकल अभ्यास:
आज जब भी कोई चुनौती आए, अपने आत्मविश्वास को बढ़ाएं। खुद से कहें:
“मैं इस चुनौती से निपटने के लिए सक्षम हूँ।”
धैर्य रखें, अपने काम में मेहनत करें और नतीजों के बारे में चिंता न करें।
ध्यान: क्या आपके अंदर आत्मविश्वास बढ़ रहा है? क्या आप अपने प्रयासों में समर्पण दिखा पा रहे हैं?
संतुलन और आत्म-नियंत्रण
श्लोक पढ़ें: “यदा यदा हि धर्मस्य…” (अध्याय 4, श्लोक 7)
प्रैक्टिकल अभ्यास:
संतुलन बनाए रखें। काम और विश्राम दोनों के लिए समय निकालें।
जब कोई तनावपूर्ण स्थिति हो, तो खुद को याद दिलाएं: “जो हो रहा है, वह अच्छे के लिए हो रहा है।”
ध्यान: क्या आप अपने जीवन में संतुलन बना पा रहे हैं? क्या तनाव को संभाल पा रहे हैं?
विचारों पर नियंत्रण
श्लोक पढ़ें: “मनःप्रसादे सच्चिदानन्दः…” (अध्याय 15, श्लोक 10)
प्रैक्टिकल अभ्यास:
आज खुद को सकारात्मक विचारों से भरें।
जब भी नकारात्मक सोच आए, उसे बदलने के लिए गीता के किसी अच्छे श्लोक को याद करें।
ध्यान: क्या आप अपने विचारों पर नियंत्रण कर पा रहे हैं? क्या आप सकारात्मक सोच बना पा रहे हैं?
कर्म और उद्देश्य
श्लोक पढ़ें: “कर्म ही धर्म है…”
प्रैक्टिकल अभ्यास:
आज अपने कार्य को एक धार्मिक कार्य की तरह करें।
मन से सोचें: इस कार्य का उद्देश्य समाज या खुद के लिए कैसे अच्छा हो सकता है।
ध्यान: क्या आपका कार्य उद्देश्यपूर्ण और प्रेरणादायक बन पाया?
आभार और धन्यवाद
श्लोक पढ़ें: “जो हुआ अच्छा हुआ…”
प्रैक्टिकल अभ्यास:
आज, हर छोटी-छोटी बात का आभार करें।
आत्ममंथन करें: “क्या मैं जितनी सफलता या असफलता देख रहा हूं, वह मेरे लिए शुभ है?”
ध्यान: क्या आप हर परिस्थिति में आभारी महसूस कर रहे हैं? क्या आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है?
रूटीन के बाद क्या करें?
रिव्यू करें: हर दिन के अंत में 5 मिनट निकालकर सोचें कि आपने इस दिन में क्या सीखा और कौन सी बातें सुधार सकते हैं।
मनोबल बनाए रखें: लगातार इन अभ्यासों को करते रहें। जीवन में शांति, आत्मविश्वास और सफलता के लिए यह एक लंबी यात्रा होगी।
आप इस रूटीन को लगातार अपनी दिनचर्या में शामिल करें और देखेंगे कि गीता के विचार धीरे-धीरे आपकी ज़िंदगी को और भी सकारात्मक और संतुलित बना रहे हैं।
नोट- अगर आपको सफलता नहीं मिलती है, तो चिंता न करें, इस बारे में आपकी क्या राय है, कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बताएं। आपकी राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।