
जैसलमेर का किला भारत के राजस्थान
जैसलमेर किला (जिसे सोनार किला या स्वर्ण किला भी कहा जाता है) भारत के राजस्थान राज्य के थार मरुस्थल में स्थित एक ऐतिहासिक और भव्य दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्रमुख और सुंदर किलों में से एक माना जाता है।
जैसलमेर किला का निर्माण 1156 ई. में रावल जैसल ने करवाया था, जो भाटी राजपूत शासक थे।
यह किला त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है, जिससे यह आसपास के मरुस्थल क्षेत्र पर नजर रखता है। जिससे यह आसपास के मरुस्थल क्षेत्र पर नजर रखता है।
रावल जैसल ने जब लोध्रवा (पुराना राजधानी क्षेत्र) को असुरक्षित पाया, तब उन्होंने त्रिकूट पर्वत की चोटी पर इस दुर्ग का निर्माण कराया। इस स्थान को उन्होंने ज्योतिष और रणनीतिक कारणों से चुना था, जिससे यह किला दूर-दूर से शत्रुओं पर नजर रख सके।
इस किला को पीले बलुआ पत्थर से बना हुआ है, जो सूरज की रोशनी में सुनहरा दिखाई देता है — इसलिए इसे “सोनार किला” कहा जाता है। यह दुनिया के कुछ “जीवित किलों” में से एक है, क्योंकि आज भी इसके भीतर लगभग 2000 लोग रहते हैं।
जैसलमेर का यह किला मुगल आक्रमणों का कई बार गवाह रहा।- अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण (1294 ई.) – ह जैसलमेर किले पर पहला बड़ा हमला था, जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने हमला किया।
कारण था भाटी राजपूतों द्वारा दिल्ली से गुजरने वाले कारवां को लूटना।
इस किले पर लगभग हमला 8 वर्षों तक चला, उसके बाद किले की घेराबंदी की गई।
जब बचाव की संभावना नहीं रही, तो राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया और पुरुष युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
इसे पहला जौहर कहा जाता है।
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प्रथम जौहर की कथा जैसलमेर किले के इतिहास की सबसे वीरता पूर्ण, ह्रदय विदारक और गौरवशाली घटनाओं में से एक है। यह घटना राजपूतों की असाधारण आत्मबलिदान की भावना और मर्यादा की रक्षा के लिए प्राण त्यागने की परंपरा को दर्शाती है।
जौहर ऐसी एक प्रथा थी जिसमें राजपूत स्त्रियाँ युद्ध में हार की स्थिति में दुश्मनों द्वारा अपमान से बचने के लिए सामूहिक रूप से आग में कूदकर आत्मदाह कर लेती थीं। इसके बाद पुरुष युद्ध के मैदान में केवल मृत्यु के लिए लड़ते थे, जिसे शाका कहा जाता है।
दूसरे आक्रमण (16वीं सदी के मध्य): – इस समय तक मुग़ल साम्राज्य अपनी शक्ति के चरम पर था। अकबर और उसके उत्तराधिकारियों ने राजस्थान के कई किलों को अपने अधीन कर लिया था।
जैसलमेर के भाटी शासकों ने स्थिति को समझते हुए मुगलों से संधि कर ली।
उन्होंने मुगल सम्राटों को कर (tribute) देना शुरू किया और आपसी शांति बनाए रखी।
इस संधि के बाद जैसलमेर को आक्रमणों से कुछ शांति मिली, और व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ीं।
अंग्रेजों के समय की स्थिति: 19वीं सदी में जैसलमेर ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ भी संबंध बनाए।
भाटी राजाओं ने ब्रिटिशों के साथ मिलकर अपनी रियासत की स्वायत्तता बनाए रखी, लेकिन बाहरी आक्रमण अब नहीं हुए।
जैसलमेर किले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली, रोमांचक और वीरता की कहानियों से भरा हुआ है। यह किला न केवल वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राजस्थान की राजपूताना संस्कृति, राजपूत वीरता और मरुस्थलीय सामरिक रणनीतियों का प्रतीक भी है।
जैसलमेर का यह किला समुद्र तल से लगभग 250 फीट ऊपर स्थित है। इस किले में लगभग 99 बुर्जें हैं, जिनमें से अधिकतर का निर्माण 17वीं सदी में हुआ था। किले में चार बड़े प्रवेश द्वार हैं – अखाई पोल, सूरज पोल, गणेश पोल, और हवा पोल। किले के भीतर राज महल, जिसमें पुराने समय के शाही अवशेष और भित्तिचित्र हैं।
आज का जैसलमेर किला न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि एक जीवंत, सांस्कृतिक और पर्यटन के केंद्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह किला अब भी सजीव है – यानी यहाँ लोग रहते हैं, जीवन चलता है, व्यापार होता है, और धार्मिक गतिविधियाँ भी जारी रहती हैं।
जैसलमेर किले के मुख्य आकर्षण:
राज महल (Royal Palace):- पुराने शाही दरबार, झरोखे और शस्त्रों का संग्रह।
भगवन लक्ष्मीनाथ मंदिर:- भगवन विष्णु और लक्ष्मी को समर्पित, सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक।
जैन मंदिर (12वीं–16वीं सदी):- दिलवाड़ा शैली में बने 7 भव्य मंदिर, बारीक नक्काशी के लिए प्रसिद्ध।
हवेलियाँ (महलनुमा घर):- पटवों की हवेली , सलीम सिंह की हवेली , नाथमल की हवेली, ये हवेलियाँ समृद्ध व्यापारियों द्वारा बनवाई गई थीं और नक्काशीदार बालकनियों व दीवारों के लिए प्रसिद्ध हैं।
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