jeevan mein pareshaanee ka saamana kaise karen

How to face problems in life

 

भगवद गीता में जीवन की कठिनाइयों से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए गए हैं। गीता के अनुसार, जीवन में परेशानी का सामना करने के लिए हमें कुछ मूलभूत दृष्टिकोण अपनाने चाहिए:

 

कर्म (Action) और निष्काम कर्म (Selfless Action)

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”। इसका अर्थ है कि हमें केवल अपने कर्तव्यों (कर्म) पर ध्यान देना चाहिए, न कि उसके परिणामों पर। जब हम बिना किसी स्वार्थ के अपना काम करते हैं, तो मानसिक शांति मिलती है और परेशानियों का सामना करना आसान हो जाता है।

 

 

समत्व का भाव (Equanimity)

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, “सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।” इसका मतलब है कि हमें सुख और दुख, सफलता और विफलता, दोनों को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए। जब हम मानसिक रूप से संतुलित रहते हैं, तो समस्याओं का सामना करना सरल हो जाता है।

 

 

योग (Meditation and Mindfulness)

गीता में योग का बहुत महत्व है। श्री कृष्ण ने कहा, “योगस्थ: कुरु कर्माणि”, इसका मतलब है कि हमें योग की स्थिति में रहकर अपने कर्मों को करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि मानसिक शांति और केंद्रितता से कार्य करने से परेशानियों पर विजय पाई जा सकती है।

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आध्यात्मिक दृष्टिकोण (Spiritual Perspective)

गीता के अनुसार, जीवन के दुख और दर्द अस्थायी हैं। हमें यह समझना चाहिए कि आत्मा शाश्वत है और शरीर और भौतिक दुनिया की समस्याएँ अस्थायी हैं। जब हम अपने वास्तविक स्वरूप, यानी आत्मा, को पहचानते हैं, तो बाहरी परिस्थितियों का प्रभाव कम हो जाता है।

 

 

विचारों का नियंत्रण (Control Over Thoughts)

गीता में श्री कृष्ण ने मानसिक स्थिति पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे विचारों का प्रभाव हमारे कार्यों और जीवन पर पड़ता है। इसलिए हमें अपने विचारों को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि नकारात्मकता से बचा जा सके।

 

 

सहायता की मांग (Seeking Guidance)

अर्जुन ने गीता में श्री कृष्ण से मार्गदर्शन लिया जब उसे जीवन की परेशानियाँ घेरने लगीं। इसी तरह, जब जीवन में कठिनाई आए, तो हमें सही मार्गदर्शन लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। गुरु या अच्छे मित्रों से सलाह लेना जीवन को आसान बना सकता है।

 

स्वयं में विश्वास (Self-Belief)

गीता में विश्वास और आत्म-विश्वास का बहुत महत्व है। अर्जुन को श्री कृष्ण ने बार-बार यह समझाया कि उसे अपनी शक्तियों पर विश्वास रखना चाहिए। हमें अपने अंदर छिपी हुई शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है।

 

सत्संग और भक्ति (Spiritual Gathering and Devotion)

गीता में भक्ति के माध्यम से भगवान से संबंध जोड़ने की बात की गई है। जब हम भक्ति और सत्संग के मार्ग पर चलकर जीवन की समस्याओं को भगवान के सामने रखते हैं, तो हमारी मानसिक शांति बढ़ती है और हम समाधान की ओर अग्रसर होते हैं।

 

असंतुलन से बचें (Avoiding Extremes)

गीता में श्री कृष्ण ने मध्य मार्ग की बात की है, न तो अत्यधिक भोग में उलझो, न ही अत्यधिक तपस्या में। असंतुलन से बचते हुए संतुलित जीवन जीने की सलाह दी है। यह जीवन में शांतिपूर्ण संघर्ष से उबरने में मदद करता है।

 

इन सिद्धांतों को अपनाकर जीवन की समस्याओं का सामना किया जा सकता है, और अंततः हम मानसिक शांति और संतुष्टि पा सकते हैं। गीता हमें सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयाँ अस्थायी हैं, और हर समस्या का समाधान भीतर से निकलता है।

 

गीता में विचारों का नियंत्रण अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारी मानसिक स्थिति, कार्य, और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को निर्धारित करता है। श्री कृष्ण ने गीता में कई स्थानों पर यह बताया है कि विचारों पर नियंत्रण पाना और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शित करना, मानसिक शांति और आत्म-नियंत्रण प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।

 

 

गीता में विचारों के नियंत्रण के कुछ प्रमुख पहलू:

मन का नियंत्रण (Control of the Mind)
गीता में मन को “चंचल” (चंचल और अनियंत्रित) बताया गया है। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“मनः प्रंतीनिहं यानि कर्माणि शरणं हि सर्वशः।”

 

इसका अर्थ है कि मन में उठते हुए विचारों को नियंत्रित करना बहुत कठिन है, लेकिन यह संभव है। मन में विचार आते हैं, लेकिन हम उन्हें दिशा देने में सक्षम हैं। अगर हम अपने विचारों को सही दिशा में लगाते हैं, तो वे हमारी मदद कर सकते हैं।

 

 

सतत अभ्यास और वैराग्य (Constant Practice and Detachment)

गीता में श्री कृष्ण ने बताया कि विचारों को नियंत्रित करने के लिए सतत अभ्यास (Abhyasa) और वैराग्य (Detachment) की आवश्यकता है। जब हम लगातार अभ्यास करते हैं, जैसे ध्यान या साधना, और भौतिक रूप से और मानसिक रूप से लगाव को कम करते हैं, तो विचारों का नियंत्रण संभव हो सकता है।

 

 

श्री कृष्ण कहते हैं:

“अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्नि्रोधोऽस्य”
यानी, मानसिक साधना और भौतिक इच्छाओं से वैराग्य अपनाकर हम अपने विचारों पर नियंत्रण पा सकते हैं।

 

योग और ध्यान (Yoga and Meditation)

गीता के अनुसार, योग और ध्यान मानसिक शांति प्राप्त करने के महत्वपूर्ण साधन हैं। जब हम योग करते हैं, तो हम शरीर, मन, और आत्मा के बीच एक सामंजस्य स्थापित करते हैं, जो विचारों को नियंत्रित करने में मदद करता है।

 

गीता में श्री कृष्ण ने कहा:

“योगस्थ: कुरु कर्माणि”
इसका मतलब है कि हमें अपने कामों को ध्यान और संतुलन के साथ करना चाहिए। जब हम मानसिक रूप से केंद्रित रहते हैं, तो विचार स्वतः नियंत्रित हो जाते हैं।

 

 

सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का चयन (Choosing Positive Over Negative Thoughts)

गीता में यह भी कहा गया है कि हमें अपने विचारों का चयन करना चाहिए। हम नकारात्मक विचारों को छोड़कर सकारात्मक विचारों को अपनाकर मानसिक शांति पा सकते हैं। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
“यत् शङ्केह जीवितं विश्वं, तदृक्क्षेत् परमं सुखम्।”

 

इसका अर्थ है कि जब हम सही दिशा में अपने विचारों को मोड़ते हैं, तो जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

 

 

आत्मज्ञान (Self-Knowledge)

गीता में आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार को अत्यधिक महत्व दिया गया है। जब हम अपनी असली पहचान, यानी आत्मा को समझते हैं, तो विचारों पर नियंत्रण पाना आसान हो जाता है। श्री कृष्ण कहते हैं:
“न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माणि सर्वश:।”

 

जब हम समझते हैं कि हम शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हैं, तो हम अपने मानसिक विचारों से बाहर निकल सकते हैं और उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।

 

 

सत्कर्म और सकारात्मक सोच (Good Deeds and Positive Thinking)

गीता में यह भी कहा गया है कि अच्छे कर्म करने से मानसिक शांति मिलती है। अगर हम दिन-प्रतिदिन अच्छे कर्म करते हैं और सकारात्मक सोच रखते हैं, तो हमारे विचार भी सकारात्मक होंगे, जो मानसिक संतुलन में मदद करेगा।

 

श्री कृष्ण ने कहा:
“यज्ञदानतप: कर्म, नित्यं कर्मणि योगिन:।”

यानी, जो लोग नित्य अच्छे कार्य करते हैं, उनके विचार शुद्ध होते हैं और वे आसानी से अपने मन पर नियंत्रण कर सकते हैं।

 

 

आध्यात्मिक अभ्यास (Spiritual Practice)

गीता में यह भी बताया गया है कि हमें मानसिक व्यथाओं और तनाव से उबरने के लिए आध्यात्मिक अभ्यास करना चाहिए। यह अभ्यास हमें अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके लिए ध्यान, प्राणायाम, मंत्र जाप, आदि उपयोगी होते हैं।

 

 

निष्कर्ष:

गीता के अनुसार, विचारों का नियंत्रण केवल एक मानसिक अभ्यास है जो समय और धैर्य के साथ संभव है। हमें अपने मन को सही दिशा में लगाकर, ध्यान और आत्म-जागरूकता के माध्यम से मानसिक शांति और नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। जब हम अपने विचारों पर नियंत्रण पा लेते हैं, तो न केवल हमारी मानसिक स्थिति सुधरती है, बल्कि हम जीवन की चुनौतियों का सामना भी अधिक मजबूती से कर सकते हैं।

 

Note- जीवन में समस्याओं का सामना कैसे करें?  के बारे में आपकी क्या राय है हमे नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताए। आपकी राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है

 

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