Mystical Khajuraho – Where Sculptures Whisper Stories

“रहस्यमय खजुराहो: जहाँ मूर्तियाँ कहानियाँ सुनाती हैं”

 

भारत में खजुराहो की भूमिका केवल एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, धार्मिक, कलात्मक और पर्यटन केंद्र के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी पहचान भारत की विविधता, सहिष्णुता और कलात्मक परंपरा के प्रतीक के रूप में होती है।

 

भारत में खजुराहो की प्रमुख भूमिकाएँ:

सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक (Cultural Heritage):

 

खजुराहो के मंदिर भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और कलात्मक उपलब्धियों का प्रमाण हैं।

 

यह दिखाता है कि भारत में धर्म, कला, और सौंदर्यबोध को किस तरह संतुलित किया गया।

 

यह यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) घोषित किया गया है — जो इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान भी देता है।

 

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धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण:

खजुराहो में हिंदू और जैन धर्म दोनों के मंदिर हैं, जो मध्यकालीन भारत में धार्मिक विविधता और सह-अस्तित्व का प्रतीक हैं।

 

इससे पता चलता है कि उस समय समाज कितना सहिष्णु और समावेशी था।

 

भारतीय मूर्तिकला और वास्तुकला का शिखर:

खजुराहो की मूर्तिकला भारतीय शिल्पकला का उच्चतम स्तर दिखाती है।

 

यहाँ की नागर शैली की वास्तुकला और पत्थरों की नक्काशी को दुनिया भर में सराहा गया है।

 

भारत की आर्ट स्कूलों में खजुराहो को एक आदर्श उदाहरण के रूप में पढ़ाया जाता है।

 

पर्यटन और अर्थव्यवस्था में योगदान:

खजुराहो भारत का एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल है।

 

यह हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है — जिनमें भारतीय और विदेशी दोनों शामिल हैं।

 

इससे स्थानीय रोजगार, होटल उद्योग, और हस्तशिल्प बाजार को बढ़ावा मिलता है।

 

भारतीय दर्शन और जीवन दृष्टिकोण का प्रतिबिंब:

खजुराहो की मूर्तियाँ केवल शारीरिक प्रेम तक सीमित नहीं हैं — वे मानव जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को दर्शाती हैं।

 

यह दिखाता है कि भारतीय संस्कृति काम (इच्छा) को भी एक पवित्र और नैतिक भाग मानती है, न कि वर्जित।

 

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान:

खजुराहो ने भारत को विश्व के मानचित्र पर एक सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में मदद की है।

 

यह न केवल इतिहास प्रेमियों, बल्कि कलाकारों, शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है।

 

खजुराहो का इतिहास भारत के समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक और स्थापत्य विरासत का एक अद्भुत उदाहरण है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है, जो अपनी उत्कृष्ट और जटिल मूर्तिकला युक्त मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

 

 

Akbar's Tomb in Agra

Agra Me Akbar Ka Makabara

खजुराहो का संक्षिप्त इतिहास:

1. निर्माण काल:

खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ईस्वी के बीच चंदेल वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया था।

 

चंदेल वंश के शासकों ने खजुराहो को धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया।

 

ये मंदिर मुख्यतः हिंदू और जैन धर्म से संबंधित हैं।

 

2. मंदिरों की संख्या:

मूल रूप से खजुराहो में लगभग 85 मंदिर थे।

 

आज सिर्फ लगभग 20 मंदिर ही संरक्षित अवस्था में बचे हैं।

 

3. स्थापत्य शैली:

खजुराहो के मंदिर नागर शैली में बने हैं, जिनमें शिखर (ऊँचा गुंबदाकार भाग) प्रमुख होता है।

 

मंदिरों की बाहरी दीवारों पर की गई कामकला (erotic sculptures) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, लेकिन ये केवल मंदिर की मूर्तिकला का एक भाग हैं — बाकी मूर्तियाँ देवी-देवताओं, अप्सराओं, संगीत, युद्ध, और दैनिक जीवन से जुड़ी हैं।

 

4. धार्मिक सहिष्णुता:

खजुराहो के मंदिर हिंदू धर्म (विशेषकर शैव, वैष्णव, और शक्त संप्रदाय) के साथ-साथ जैन धर्म के भी मंदिरों को समाहित करते हैं, जो उस समय धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।

 

प्रमुख मंदिर:

कंदरिया महादेव मंदिर – सबसे बड़ा और भव्य मंदिर, भगवान शिव को समर्पित।

 

लक्ष्मण मंदिर – भगवान विष्णु को समर्पित, स्थापत्य दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण।

 

विष्णु मंदिर, चौंसठ योगिनी मंदिर, परसवनाथ जैन मंदिर – अन्य प्रमुख मंदिर।

 

पतन और पुनः खोज:

13वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों और दिल्ली सल्तनत के विस्तार के बाद खजुराहो धीरे-धीरे उपेक्षित हो गया।

जंगलों में छुपा यह नगर 1838 में ब्रिटिश यात्री टी. एस. बर्ट द्वारा “पुनः खोजा” गया।

 

वर्तमान महत्व:

यूनेस्को द्वारा 1986 में विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) के रूप में मान्यता।

 

यह अब एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

 

यहाँ हर साल खजुराहो नृत्य महोत्सव (Khajuraho Dance Festival) भी आयोजित होता है, जिसमें भारत के विभिन्न शास्त्रीय नृत्य रूपों का मंचन होता

 

1.खजुराहो की मूर्तिकला में कामकला (कामसूत्र) का महत्व:

विशेषताएँ:

खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर अत्यंत सूक्ष्म और जीवंत मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।

 

इनमें देवी-देवताओं, अप्सराओं, दैनिक जीवन, संगीत, युद्ध, और प्रेम के दृश्य चित्रित हैं।

 

कामकला (erotic art) संबंधी मूर्तियाँ मंदिरों के बाहरी भागों पर ही मिलती हैं, भीतर नहीं।

 

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अर्थ और उद्देश्य:

ये मूर्तियाँ काम (desire) को जीवन का एक स्वाभाविक और पवित्र भाग मानती हैं, जैसे धर्म, अर्थ और मोक्ष।

 

कुछ विद्वान मानते हैं कि ये मूर्तियाँ तांत्रिक परंपरा, मानव जीवन की विविधता, और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक हैं।

 

यह कला कामसूत्र जैसे ग्रंथों से प्रेरित मानी जाती है, लेकिन इसका उद्देश्य शारीरिकता से आगे, जीवन की पूर्णता को दिखाना है।

 

2. मंदिरों की वास्तुकला और संरचना:
स्थापत्य शैली – नागर शैली:

खजुराहो के मंदिरों का निर्माण उत्तर भारत की पारंपरिक नागर शैली में हुआ है।

 

मंदिरों में मुख्यतः तीन भाग होते हैं:

गर्भगृह (Sanctum) – जहाँ मुख्य देवता की मूर्ति होती है।

 

मंडप (Hall) – पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए।

 

शिखर (Spire) – गर्भगृह के ऊपर ऊँचा, गुंबदनुमा भाग।

 

A cursed and mysterious village Kuldhara

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निर्माण तकनीक:

मंदिरों का निर्माण रेतीले पत्थरों से किया गया है, जिन्हें जोड़ने में किसी सीमेंट या गारे का प्रयोग नहीं हुआ।

पत्थरों को एक विशेष इंटरलॉकिंग प्रणाली से जोड़ा गया है।

 

3. चंदेल वंश का इतिहास:
चंदेल शासक:

चंदेल वंश ने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक बुंदेलखंड क्षेत्र पर शासन किया।

ये राजपूत शासक पहले गुर्जर प्रतिहारों के अधीन थे, फिर स्वतंत्र हो गए।

 

प्रमुख चंदेल राजा:

यशोवर्मन (c. 925–950 CE) – लक्ष्मण मंदिर बनवाया।

 

धंग देव (c. 950–1002 CE) – कंदरिया महादेव जैसे भव्य मंदिर बनवाए।

चंदेल शासकों ने खजुराहो को धार्मिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य केंद्र के रूप में विकसित किया।

 

खजुराहो की पर्यटन जानकारी:
कैसे पहुँचें:

रेलवे स्टेशन: खजुराहो रेलवे स्टेशन (दिल्ली, झाँसी, आगरा से कनेक्शन)

 

हवाई अड्डा: खजुराहो एयरपोर्ट (सीमित उड़ानें)

 

सड़क मार्ग: छतरपुर, सतना, झाँसी से अच्छी सड़कें

 

घूमने का सबसे अच्छा समय:

अक्टूबर से मार्च – ठंडा और सुहावना मौसम

 

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क्या देखें:

पश्चिमी मंदिर समूह – कंदरिया महादेव, लक्ष्मण मंदिर

पूर्वी समूह – जैन मंदिर

खजुराहो संग्रहालय (Khajuraho Museum)

खजुराहो नृत्य महोत्सव (फरवरी-मार्च) – शास्त्रीय नृत्य

 

निष्कर्ष:

खजुराहो, भारत के अतीत का जीवंत प्रमाण है — जहाँ कला, धर्म, दर्शन और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

यह भारत की सहिष्णुता, रचनात्मकता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है और आज भी भारतीय संस्कृति की गहराई को दुनिया के सामने लाने का एक सशक्त माध्यम है।

 

नोट:- खजुराहो के बारे में आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट बॉक्स में हमें ज़रूर बताएँ। आपकी राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

 

 

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