बनारस के घाट जहां हर पत्थर कहानी कहता है
बनारस, जिसे वाराणसी या काशी के नाम से भी जाना जाता है, भारत का एक अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित है और हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, तथा जैन धर्म के लिए अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है। यह शहर विश्व के सबसे पुराने सतत बसे हुए शहरों में से एक है।
बनारस – एक ऐसा नगर जो जीवन, मृत्यु और मोक्ष की संपूर्ण कथा अपने घाटों पर संजोए बैठा है। यहाँ की यात्रा केवल एक पर्यटक अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा होती है। गंगा के किनारे बसे घाट जैसे दशाश्वमेध, मणिकर्णिका और अस्सी, हर दिन हजारों श्रद्धालुओं, साधकों और यात्रियों की कहानियों के साक्षी बनते हैं।
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बनारस: घाटों की नगरी
बनारस, जिसे काशी या वाराणसी भी कहा जाता है, गंगा नदी के किनारे बसा हुआ भारत का सबसे प्राचीन और पवित्र नगर है। यहाँ गंगा नदी की धारा के साथ-साथ करीब ८० से अधिक घाट बसे हैं, जो इस शहर की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान बनाते हैं।
बनारस (वाराणसी) सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि कहानियों की जीवित पुस्तक है। इसकी हर गली, हर मंदिर, हर घाट के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कहानी छिपी है। आइए, बनारस की एक ऐसी ही ऐतिहासिक जगह की कहानी जानते हैं – काशी विश्वनाथ मंदिर की।
बनारस (वाराणसी) दुनिया के सबसे प्राचीन और पवित्र शहरों में से एक है, और हर साल लाखों लोग इसकी आध्यात्मिकता, संस्कृति और घाटों को अनुभव करने आते हैं।
2023 में लगभग 1 करोड़ से ज़्यादा लोग बनारस आए, जिसमें बड़ी संख्या काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर, गंगा आरती, और सांस्कृतिक अनुभव देखने वालों की रही।
कौन-कौन आता है?
भारत के कोने-कोने से तीर्थयात्री
यूरोप, अमेरिका, जापान, थाईलैंड जैसे देशों से विदेशी पर्यटक
साधु-संत, योग-प्रेमी, और विद्यार्थी
फोटोग्राफर, ब्लॉगर, और डॉक्यूमेंट्री मेकर

बनारस की ऐतिहासिक विशेषताएँ:
धार्मिक महत्व:
बनारस को “मोक्ष नगरी” कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां मरने से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त होती है।
यहां काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है, जो भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
तुलसीदास ने यहीं रामचरितमानस की रचना की थी।
गंगा नदी और घाट:
बनारस के घाट, विशेष रूप से दशाश्वमेध घाट, पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।
गंगा आरती का दृश्य अत्यंत भव्य होता है, जो प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
बौद्ध धर्म से संबंध:
बनारस के पास सारनाथ स्थित है, जहाँ गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
शिक्षा और संस्कृति का केंद्र:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) भारत का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है।
यह शहर संगीत, कला और साहित्य का भी एक महान केंद्र रहा है – जैसे कि पंडित रवि शंकर और उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान यहीं से जुड़े हुए थे।
हस्तशिल्प और बनारसी साड़ी:
बनारसी साड़ी अपने बारीक ज़री के काम और रेशम के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
बनारस केवल एक शहर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है। इसकी गलियों, मंदिरों, घाटों और लोगों में भारत की आत्मा बसती है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ जीवन, मृत्यु और मोक्ष सब एक साथ विद्यमान हैं।

बनारस – एक ऐतिहासिक शहर की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, जब समय भी शायद उतना व्यवस्थित नहीं था जितना आज है। तब गंगा के किनारे एक नगर बसता था – काशी, जिसे आज हम बनारस या वाराणसी के नाम से जानते हैं। कहते हैं, यह नगर स्वयं भगवान शिव ने बसाया था। यह धरती का नहीं, आध्यात्म का केंद्र था। कहते हैं, यहाँ समय ठहर जाता है और आत्मा अपनी शांति पाती है।
कहानी की शुरुआत
एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इस बात पर विमर्श कर रहे थे कि संसार का सबसे पवित्र स्थान कौन सा है? ब्रह्मा ने कहा – “मेरा पुष्कर!”, विष्णु बोले – “मेरा बद्रीनाथ!” परंतु शिव मुस्कुराए और बोले – “मेरा काशी!” वहाँ जहाँ मोक्ष स्वयं लोगों का इंतज़ार करता है।
भगवान शिव ने काशी को अपने त्रिशूल पर स्थापित किया ताकि यह कभी डगमग न हो। तभी से यह नगर ‘अविनाशी नगरी’ कहलाया। वर्षों बीते, राजाओं का आना-जाना हुआ, समय बदला, पर बनारस अपनी जगह अटल रहा – जैसे ध्यान में डूबा कोई साधु।
संतों और साधुओं की धरती
कबीर जैसे संत, तुलसीदास जैसे कवि, रविदास जैसे समाज सुधारक – सभी यहीं जन्मे या बसे। तुलसीदास ने यहीं रामचरितमानस लिखा, कबीर ने अपने दोहों से समाज को जागरूक किया, और रविदास ने भक्ति का मार्ग दिखाया। बनारस की गली-गली में भक्ति की गूँज थी।
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घाटों की कहानियाँ
गंगा किनारे बसे घाट, जैसे दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट और अस्सी घाट, हर दिन हजारों कहानियाँ सुनते हैं – जन्म की, मृत्यु की, प्रेम की, तपस्या की। खासकर मणिकर्णिका घाट, जहाँ लोग मोक्ष की आशा में अंतिम साँस लेते हैं।
कहा जाता है, मणिकर्णिका घाट पर अग्नि कभी बुझती नहीं। यहाँ जीवन समाप्त नहीं होता, बस एक यात्रा पूरी होती है और आत्मा को नई दिशा मिलती है।
बनारस की आत्मा
बनारस सिर्फ ईंट-पत्थर का शहर नहीं है। यहाँ की सुबह आरती से शुरू होती है और शाम फिर आरती में ढल जाती है। यहाँ संगीत हवा में तैरता है, हर मोड़ पर शास्त्रीय संगीत की कोई लहर सुनाई देती है।
बनारस की बनारसी साड़ी, पान, ठाठ, और लोगों का मिज़ाज – सब मिलकर इस शहर को एक जीवंत हस्ती बना देते हैं।
कहानी का सार
बनारस एक ऐसा शहर है जहाँ इतिहास हर गली में सांस लेता है, जहाँ अध्यात्म हर दीवार से झांकता है, और जहाँ जीवन और मृत्यु एक घाट पर साथ बैठते हैं।
यह सिर्फ एक शहर नहीं, एक भावना है – एक ऐसा अनुभव जो शब्दों में समा नहीं सकता, बस जिया जा सकता है।
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काशी विश्वनाथ मंदिर की कहानी
(बनारस की सबसे पवित्र और ऐतिहासिक जगह)
कहानी की शुरुआत:
बहुत समय पहले, देवताओं में चर्चा चल रही थी – पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ भगवान शिव स्वयं वास करते हों। तब शिवजी ने एक जगह चुनी – जहाँ गंगा बहती थी, जहाँ धर्म का दीपक जलता था – और वहीं उन्होंने काशी को बसाया।
शिव ने बसाया काशी:
शिवजी ने कहा –
“जो कोई मेरी नगरी काशी में मरेगा, मैं स्वयं उसे मोक्ष दूँगा।”
इसलिए काशी को ‘मोक्ष की नगरी’ कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर:
यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यहाँ शिव ‘विश्वनाथ’ – यानी संपूर्ण विश्व के स्वामी के रूप में पूजे जाते हैं।
कहा जाता है कि जब मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने इस मंदिर को नष्ट करवा दिया, तब महारानी अहिल्याबाई होलकर (18वीं शताब्दी) ने इसे फिर से बनवाया। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया – जो आज भी चमकता है।
चमत्कारों की भूमि:
यहाँ आने वाले भक्तों की मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से काशी विश्वनाथ के दर्शन करता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
यह भी कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भगवान शिव कान में ‘मोक्ष मंत्र’ फूँकते हैं, जिससे आत्मा बंधनों से मुक्त हो जाती है।
एक और ऐतिहासिक स्थान – मणिकर्णिका घाट
इसकी भी कहानी:
कहते हैं, एक बार माँ पार्वती का कर्णफूल (earring) गंगा स्नान करते हुए गिर गया था। शिवजी ने वहीं खुदाई की और वह स्थान बना – मणिकर्णिका घाट।
यह घाट शव-संस्कारों के लिए प्रमुख माना जाता है, और मान्यता है कि यहाँ चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं। यही कारण है कि यह घाट मोक्ष की प्रतीक बन चुका है।
काशी विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट बनारस की आत्मा हैं।
ये स्थान केवल मंदिर या घाट नहीं हैं, बल्कि हज़ारों वर्षों की संस्कृति, आस्था और अध्यात्म के साक्षी हैं।
जब आप बनारस जाएँ, तो इन स्थानों को केवल देखें नहीं – महसूस करें, क्योंकि हर ईंट, हर दीपक, और हर घंटी के पीछे छिपी है एक ऐतिहासिक कहानी।
हर घाट की अपनी एक कहानी, परंपरा और विशेषता है।
गंगा नदी और घाटों का महत्व
गंगा नदी हिंदू धर्म में माँ गंगा के रूप में पूजनीय है।
बनारस में गंगा की धारा उत्तर दिशा की ओर बहती है, जिसे “उत्तरवाहिनी गंगा” कहते हैं – यह बहुत शुभ मानी जाती है।
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यहाँ के घाट:
स्नान, पूजा, ध्यान, और संस्कार के लिए प्रसिद्ध हैं।
हर घाट के पीछे कोई पौराणिक कथा या इतिहास जुड़ा है।

प्रमुख घाटों की सूची और उनकी कहानी
1. मणिकर्णिका घाट
यह सबसे प्राचीन और पवित्र घाट है।
यहाँ अंतिम संस्कार किए जाते हैं।
मान्यता है कि यहाँ मृत्यु से मोक्ष मिलता है।
कहते हैं, माँ पार्वती का कर्णफूल यहीं गिरा था, जिससे इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा।
2. दशाश्वमेध घाट
यह घाट बनारस का सबसे प्रसिद्ध और जीवंत घाट है।
यहाँ रोज़ शाम को होने वाली गंगा आरती एक अद्भुत दृश्य होता है।
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने यहाँ दस अश्वमेध यज्ञ किए थे – इसलिए नाम पड़ा दशाश्वमेध।
3. अस्सी घाट
यह घाट वह स्थान है जहाँ अस्सी नदी गंगा में मिलती है।
यहां साहित्यकार, संगीतकार और साधु-संत ध्यान और साधना में लीन रहते हैं।
बनारस की बौद्धिक और सांस्कृतिक आत्मा इस घाट से जुड़ी है।
4. पंचगंगा घाट
मान्यता है कि यहां पांच पवित्र नदियाँ (गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा और धूतपापा) मिलती हैं।
यह स्थान धार्मिक ग्रंथों और विद्वानों का केंद्र रहा है।
5. तुलसी घाट
इस घाट का संबंध गोस्वामी तुलसीदास से है।
यहीं पर उन्होंने रामचरितमानस की रचना की थी।
आज भी यहाँ रामलीला का आयोजन होता है।

गंगा आरती: घाटों की आत्मा
रोज़ शाम को दशाश्वमेध घाट और अस्सी घाट पर भव्य गंगा आरती होती है।
दीपों की कतारें, घंटियों की ध्वनि और भक्ति से भरा वातावरण – यह अनुभव अविस्मरणीय होता है।
घाटों का आध्यात्मिक प्रभाव
बनारस के घाट केवल पत्थरों से बने सीढ़ियाँ नहीं हैं, वे आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र हैं।
यहाँ आकर इंसान:
खुद से जुड़ता है,
जीवन और मृत्यु को एक साथ समझता है,
और शांति का अनुभव करता है।
निष्कर्ष:
बनारस के घाट भारत की आध्यात्मिक धरोहर हैं।
ये घाट केवल तीर्थ नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और विश्वास के जीवंत प्रतीक हैं।
गंगा की धारा की तरह, बनारस के घाट भी हमें जीवन की गहराई और सरलता सिखाते हैं।
नोट:- बनारस के घाट जहां हर पत्थर कहानी कहता है? कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बताएँ। आपकी राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।






